ज़िन्दगी सूखे पत्तों के मानिंद है
भूरा, भुना, चुरमुराय सा
सिर्फ ख्वाहिश की ज़िद से शाख से लगा हुआ
यूँ तो कोई हरारत, कोई हरकत नहीं
पर माज़ी की हवा जब चलती है
तो शाखों से गिर,
हाल के क़दमों के नीचे ही
उनकी ख़ामोशी टूटती है
भूरा, भुना, चुरमुराय सा
सिर्फ ख्वाहिश की ज़िद से शाख से लगा हुआ
यूँ तो कोई हरारत, कोई हरकत नहीं
पर माज़ी की हवा जब चलती है
तो शाखों से गिर,
हाल के क़दमों के नीचे ही
उनकी ख़ामोशी टूटती है