Monday, July 03, 2017

zinda hain abh bhi

ज़िन्दगी सूखे पत्तों के मानिंद है
भूरा, भुना, चुरमुराय सा
सिर्फ ख्वाहिश की ज़िद से शाख से लगा हुआ
यूँ तो कोई हरारत, कोई हरकत नहीं
पर माज़ी की हवा जब चलती है
तो शाखों से गिर,
हाल के क़दमों के नीचे ही
उनकी ख़ामोशी टूटती है 

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