Tuesday, July 21, 2020

Come back

We parted ways a long time ago
Took our threads to stitch separate tapestries

But my days are captive to your memories
My body stirs with remembered touches
My nights are fevered with dreams of you
Rains bring back memories of you driving slowly behind me as I walk in the rain
Songs blend our voices in my head
Leaves of books flutter open with messages from you
Cups of coffee drunk sitting in the canteen
Flash upon dregs of coffee left in my cup
Some of the places we visited have been brought down
But their shells are left unoccupied
Our furtive glances and stolen touches keep replaying in my mind’s eye,
woken only out of their reverie by the sound of your voice in my head

Seems you may just have forgotten to pick up some bits of you left behind...why don’t you come back to claim them? Just one last time?

Wednesday, July 15, 2020

badalti hawayein

बदलती हवाएं 

हवा थी हवा में बसंती हवा थी
सुनो बात मेरी
में अजब ही हवा थी

चंचल थे, थिरकते
थे पैर मेरे
ना रुकती कहीं भी
ना टिकती कहीं थी

यह दुनिया निराली
पंखों से मैंने मापी
हवा से घटा से
निडर होड़ लगती

ना कल की थी चिंता
ना आज से असंतुष्ट
कहानियाँ लिखूँ में
जीवन एक सपाट पृष्ठ

मगर चौबारे से ऊपर
जब देखने लगी मैं
मेरे यही पंख
खटकने लगे फिर

उन्हें
बांधा मरोड़ा
डराया भुलाया
यह मेरा है दाएरा
बनाके दिखाया

सपाट पृष्ठ पे गाथाएँ
लिखने लगे थे
पर कलम पकड़े हाथ
मेरे नहीं थे नहीं थे

उस गली ना बहना
बुरी हवाएँ उड़ी हैं
उस खेत ना झुलाना
यह आदत बुरी है

उस पेड़ ना चढ़ना
वो तुम्हारी नहीं हैं
आओ हमसे सीखो
क्या ग़लत क्या सही हैं

बहुत सुना,
समझा भी मैंने
कई जीवन भी काटे
अनेकों रूपों में
वही किया जो वो बताते

पर हवा को
कब किसने रोका
कब तक है बांधा
कब तक है टोका

हवा हूँ में ना रुकती
किसी के भी रोके
जब बांध टूटा
चली मैं
ना किसी की भी होके

जब तक थी रुकी में
तुम्हारी ही सुनी मैं
अपनी भी सुनाऊँ
की कोशिश बहुत मैं

अब मुझे ना सुनाना
ना सुन्नी हैं बातें
अब दिन हैं मेरे
और मेरी हैं रातें

एक स्वर लहर सी
है कानों में मेरे
मेरे मन के तालों
पे पैर हैं थिरकते

इधर बहूँगी
उधर भी में उमड़ूँ
कान्हा की बाँसूरी से मैं निकलूँ
उम्राओ के पाओं में बजूँ
बनके घुँघरू

यही सुर हैं भाते
यही हैं लुभाते
मैं स्वतंत्र. मैं उन्मुक्त
मेरी चलन को
ना अब तुम रोक पाते

मैं ठंडी हवा हूँ,
मैं ही जलती लू भी
मैं ले लूँ सभी कुछ
राहत तुम्हें मैं दूँ भी

मान लो अब तुम भी
ना रोक सकोगे
अब मेरी उड़ान को
ना टोक सकोगे

मेरे प्रेम को प्रेम मानो
नहीं आश्रित मैं
स्वेच्छा से ठहरूँ
यदि हूँ लालायित मैं

मेरी इच्छा मार्गदर्शि
मुझे मैं प्रिय हूँ
मैं हूँ अनिवार्य
हूँ मैं अद्वितीय

फिर से बनी मैं
चंचल चपल मैं
अचूक अजय मैं
फिर मैं बनी मैं

हवा हूँ हवा मैं
बसंती हवा हूँ
सुनो बात मेरी
में अजब ही हवा हूँ

zaafran ka daag

ज़ाफरान के दाग़ 

यह बात है कुछ ज़ाफ़रानी सी
दूध में छूटे धूप की निशानी सी
पीले महताब की शैतानी सी
बदहवस में मसले हाथ पर
ज़ाफ़रान की नूरानी सी
यह बात है कुछ ज़ाफ़रानी सी

गीत गाते उन झरनों के उस पानी सी
हवा में लहराते उन पौधों की मनमानी सी
वो घर जो करे यादों की निगरानी सी
यह बात है कुछ ज़ाफ़रानी सी

मन की आँखों में आंकी कहानी सी
बचपन से बिछड़ी जवानी सी
परदेस को गले लगानी सी
यह बात है कुछ ज़ाफ़रानी सी

हर गली हर नुक्कड़ का पता मुँह ज़ुबानी सी
संदूक में रखे लिहाफ में पिरोई
एक एक पल पुरानी सी
बीते दिनों की ओर देखें एक नज़र रूमानी सी
किसे बताऊँ मैं यह बात मेरी कुछ ज़ाफ़रानी सी

Saturday, July 04, 2020

Fight

That feeling again
The quagmire of deep dissatisfaction
The dark chasm
Opening its vast depths
A strange comfort
Like the embrace of a scarlet woman
Forbidden yet compelling
Destructive yet comforting
The overwhelming inadequacy
Blotting out the belief in any possibility
The sticky sweetness of failure
Wrapping itself lovingly
Till another breath of a great sigh
Putting in a fresh burst of air
Into flailing lungs
A new lease of life
Of hope
To live another day

Wednesday, June 10, 2020

Badhit

Samay ke pher hai, phirega phir se
Ladkhadaya hai insan, sambhlega phir se
Vakht ka takaza hai, sada ke liye kuchh nahi
Soch thodi dhundhlayi thi, ubhrega phir se

Samay ki neeti hai, tumhe aur mujhe parakhne ki,
Kitni shakti hai vishwas mein, usko tatolne ki
Pair jama khade raho vahi par
Aadat hai, himmat ke aage, neeti ki badalne ki

Saath apno ka dena hai,
Saath dekar auron ko apna banana hai
Apne pairon ke chalan ki seema ghataanee hai
Aur apne duniye ke dayre ko badhana hai

Girke uthenge hum, tabhi insaan hain
Auron ko uthayeinge, tabhi insaan hain
Kabhi kabhi ghabrayein, yeh laazmi hai
Ghabrake phir sambhal jaayein, tabhi insaan hain

Naya kal banayenge,
Dilon mein nahi, shareerik doori badhayeinge
Dhoondhenge kaam karne ka naya tareeka
Swavlabhita badhayenge

Kal jo thha, voh aaj nahi
Aaj bhi kal mein badlega
Badlaav hi to neeyam hai
Nahi to naya kaise ubhrega

Yeh naya zmana saamne hai
Kal aur bhi achha pal aaye
Bas dekhna hai humare dilon mein
Date rehne ki kitni dridta hai