Wednesday, July 15, 2020

badalti hawayein

बदलती हवाएं 

हवा थी हवा में बसंती हवा थी
सुनो बात मेरी
में अजब ही हवा थी

चंचल थे, थिरकते
थे पैर मेरे
ना रुकती कहीं भी
ना टिकती कहीं थी

यह दुनिया निराली
पंखों से मैंने मापी
हवा से घटा से
निडर होड़ लगती

ना कल की थी चिंता
ना आज से असंतुष्ट
कहानियाँ लिखूँ में
जीवन एक सपाट पृष्ठ

मगर चौबारे से ऊपर
जब देखने लगी मैं
मेरे यही पंख
खटकने लगे फिर

उन्हें
बांधा मरोड़ा
डराया भुलाया
यह मेरा है दाएरा
बनाके दिखाया

सपाट पृष्ठ पे गाथाएँ
लिखने लगे थे
पर कलम पकड़े हाथ
मेरे नहीं थे नहीं थे

उस गली ना बहना
बुरी हवाएँ उड़ी हैं
उस खेत ना झुलाना
यह आदत बुरी है

उस पेड़ ना चढ़ना
वो तुम्हारी नहीं हैं
आओ हमसे सीखो
क्या ग़लत क्या सही हैं

बहुत सुना,
समझा भी मैंने
कई जीवन भी काटे
अनेकों रूपों में
वही किया जो वो बताते

पर हवा को
कब किसने रोका
कब तक है बांधा
कब तक है टोका

हवा हूँ में ना रुकती
किसी के भी रोके
जब बांध टूटा
चली मैं
ना किसी की भी होके

जब तक थी रुकी में
तुम्हारी ही सुनी मैं
अपनी भी सुनाऊँ
की कोशिश बहुत मैं

अब मुझे ना सुनाना
ना सुन्नी हैं बातें
अब दिन हैं मेरे
और मेरी हैं रातें

एक स्वर लहर सी
है कानों में मेरे
मेरे मन के तालों
पे पैर हैं थिरकते

इधर बहूँगी
उधर भी में उमड़ूँ
कान्हा की बाँसूरी से मैं निकलूँ
उम्राओ के पाओं में बजूँ
बनके घुँघरू

यही सुर हैं भाते
यही हैं लुभाते
मैं स्वतंत्र. मैं उन्मुक्त
मेरी चलन को
ना अब तुम रोक पाते

मैं ठंडी हवा हूँ,
मैं ही जलती लू भी
मैं ले लूँ सभी कुछ
राहत तुम्हें मैं दूँ भी

मान लो अब तुम भी
ना रोक सकोगे
अब मेरी उड़ान को
ना टोक सकोगे

मेरे प्रेम को प्रेम मानो
नहीं आश्रित मैं
स्वेच्छा से ठहरूँ
यदि हूँ लालायित मैं

मेरी इच्छा मार्गदर्शि
मुझे मैं प्रिय हूँ
मैं हूँ अनिवार्य
हूँ मैं अद्वितीय

फिर से बनी मैं
चंचल चपल मैं
अचूक अजय मैं
फिर मैं बनी मैं

हवा हूँ हवा मैं
बसंती हवा हूँ
सुनो बात मेरी
में अजब ही हवा हूँ

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