Friday, March 23, 2018

रंगमंच

कैसा न्यारा कैसा अनूठा 
है नाता रंगमंच से रंगकारी का
वो रुझाव वो खिंचाव 
जो रहे परस्पर नर और नारी का 
कभी गर्वित माता के भाँति 
निष्ठावादी को सराहती है
कभी शिक्षक बनके वो 
अहंकारी को गिराती है 
कलाकार का मंदिर है मंच
वही उसका इष्ट भी है
वही उसकी पहचान बने है 
कभी बने उसकी पृष्ठभूमि है 
ऐसी करुणा की गाथा
हमने सुन भी रखी है 
जीवन की साँसों का लय भी 
कलाकार ने मंच की आँचल में ही तोड़ी है 
आशा का स्तोत्र है मंच
प्रेमी, माता, प्रभु यही
एक बार जीवन मंच से जो जुड़े 
आरम्भ भी वही 
अंत भी वही 

Friday, March 16, 2018

My diamond

Once i was sharp and i was bright
Someone broke me into shards of light
Each shard then burnt just as bright
Each shard became pinpoints of light