Friday, May 04, 2018

हाथ की गाथा

कभी कभी इन हाथों को देख
मन यूँ ही मुसकाता है
ना कोई नज़ाकत ना कोई हुनर
फिर क्यूँ मुझे यह भाता है

ना शिल्पकार की शिल्पी इनमें
ना चित्रकार की छवि ही है
लेखक की कहानी तो छोड़ो
ना गीतकार की मुर्रकी है

पर हाँ नींद में ओझल बच्चों के यह
सर पर जब रखे जाते हैं
प्यार, हिफ़ाज़त, ध्यान, साथ
सभी के वादें जताते हैं

दिन प्रतिदिन यह प्रेम सहित
घर का पोषण करते हैं
छोटे छोटे दुखते हाथ पैरों को
रात जग सुकून की नींद सुलाते हैं

ममता का आक्रोश है इनमें
उत्तेजना की लो भी है
सही के लिए उठ खड़े हों
ऐसी इनमें क्षमता भी है

प्रेमी के स्पर्श की छाप
अपनी पहचान में समेटे हैं
कभी अगर प्रेम दस्तक दे तो
यह पहचान पत्र बन जाते हैं

लोरी के संग झूलें हैं यह
कार्यस्थल में जगह बनाएँ हैं
कभी चूड़ियों के खनक में
श्रीनगर  रस भी जताएँ हैं

किसी एक किरदार के नहीं
यह बहुरूपी मेरे हाथ ही हैं
कैसे ना इनसे प्रेम करूँ मैं
हर उपलब्धि को सम्भव करने में
यह जो मेरे साथ ही हैं

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