Wednesday, July 15, 2020

zaafran ka daag

ज़ाफरान के दाग़ 

यह बात है कुछ ज़ाफ़रानी सी
दूध में छूटे धूप की निशानी सी
पीले महताब की शैतानी सी
बदहवस में मसले हाथ पर
ज़ाफ़रान की नूरानी सी
यह बात है कुछ ज़ाफ़रानी सी

गीत गाते उन झरनों के उस पानी सी
हवा में लहराते उन पौधों की मनमानी सी
वो घर जो करे यादों की निगरानी सी
यह बात है कुछ ज़ाफ़रानी सी

मन की आँखों में आंकी कहानी सी
बचपन से बिछड़ी जवानी सी
परदेस को गले लगानी सी
यह बात है कुछ ज़ाफ़रानी सी

हर गली हर नुक्कड़ का पता मुँह ज़ुबानी सी
संदूक में रखे लिहाफ में पिरोई
एक एक पल पुरानी सी
बीते दिनों की ओर देखें एक नज़र रूमानी सी
किसे बताऊँ मैं यह बात मेरी कुछ ज़ाफ़रानी सी

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